Friday 1 February 2013

दिल की मंजिल - सुधीर मौर्य


                  सुधीर मौर्य 'सुधीर'
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                        आखिर मुझे इंजीनियरिंग में एडमिशन मिल गया था, कानपूर के एक फेमस कॉलेज में। अब्बू और अम्मी दोनों ने सख्त ताकीद की थी मै हॉस्टल में रह कर अपनी फुफ्फो के घर रहूँ और यूँ चाहते हुए भी मै अपनी फुफ्फो के घर पर रहने को मजबूर हो गया था। मेरी फुफ्फो के घर पर दो पोर्शन थे, नीचे के पोर्शन में फुफ्फो की फैमिली मतलब वो उनके शोहर उनकी लड़की शबाना और लड़का अली। उपर के पोर्शन में उनकी देवरानी और उनकी दो लड़कियां उरुसा और तूबा, हाँ उनके शोहर का कुछ दिन पहले एक रोड एक्सीडेंट में इन्तेकाल हो गया था। 
                        मेरे रहने का इंतज़ाम मेरे फुफ्फो के पोर्शन में मतलब नीचे किया गया था। मेरा कमरा शबाना के कमरे से लगा हुआ था, फुफ्फो ने मेरी सुविधा का ख्याल रखा था और मेरे कमरे में अलग से टीवी व् सीडी प्लेयर लगवा दिया था, अब्बू ने मुझे मोटरसाईकल,लेकर दे दी थी और यूँ मेरी इंजीनियरिंग की पढाई स्टार्ट हो गयी थी।
                       शबाना बेहद ही चंचल किस्म की लड़की थी और उससे मै पहले भी दो चार हो चूका था। मुझे अभी रहते हुए वहां दो या तीन दिन ही हुए थे। की एक शाम वह धडधडाते हुए मेरे कमरे में गयी और चहकते हुए बोली- हाय हैंड्सम, व्हाट आर यू डूइंग?
कब्र खोद रहा हूँ - मै मुहं बनाते हुए बोल 
किसकी ? उसके चेहरे पर शरारत गयी थी 
मै भी तंजिया लहजे में बोला - अपनी 
वह बोली- तुम अपना ये काम थोडा पोस्पोंड नहीं कर सकते ?
मै बोला - नहीं 
तो मेरे सामने कर खड़ी हो गयी- और मैंने पहली बार शबाना को ध्यान से देखा था वह निहायत ही खूबसूरत थी, इस समय उसने ब्लू कलर की जींस और रेड कलर की टी-शर्ट पहन राखी थी- मुझे अपनी तरफ देखता पा के बोली- क्या देख रहे हो समीर? मै अचकचा कर बोल कुछ नहीं- हाँ बोलो तुम्हे क्या काम है- बस थोड़े मैथ के प्राब्लम पूछने थे।
शबाना- पी पी एन कालेज में बी एस सी  फर्स्ट ईयर  की स्टूडेंट थी।
मै बोल ठीक है पूछो- फिर वो काफी देर तक मुझसे त्रिक्नामेट्री और डायनामिक्स पर डिस्कस करती रही। उससे बात करके मै समझ गया था कि वह जहीन किस्म की लड़की है।
उसके बाद शबाना को जब भी टाइम मिलता वह मेरे कमरे में जाती पदाई के बहाने और मुझसे यूँ ही दूसरी बातें किया करती। मै समझ गया था की शबाना मुझमें दिलचस्पी ले रही है पर मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था,मै यहाँ अपनी पढाई करने आया था।
बस यही सब सोच कर मै कॉलेज से कर शाम को अपने कमरे में कम रुकता था और कोई बुक लेकर छत पर चला जाता था। छत पर जाने के लिए मुझे छोटी फुफ्फो के पोर्शन से जाना पड़ता था। यूँ तो मै उनकी फॅमिली से पहले मिल चूका था, पर अबकी बार उनसे कोई बात नहीं हुई थी, वजह सीधी-सीधी  पिछले कुछ महीनों से उपर के पोर्शन और नीचे के पोर्शन में सख्त अनबन थी, यहाँ तक एक दुसरे के पोर्शन में आने वालो पर भी तवज्जो नहीं दी जाती थी।
                   खैर मै क्या करता - एक शाम मै खुद सलाम कह उपर केपोर्सं में बैठ गया, मुझे लगा वह लोग बुरे नहीं अलबत्ता मेरी फुफ्फो और शबाना अब तक जाने कितनी बार मुझे उनकी बुराई और कसीदे सुना चुकी थी। मै  बचपन से ही उन्हें छोटी फुफ्फो कहता था- उन्होंने मुझे चाय ला कर दी, कुछ देर पास बैठी फिर वह किसी घर के काम में बिजी गयी- मैंने देखा उरुसा बेहद सलीके वाली लड़की थी, उसने घर पर भी सर को दुप्पटे से ढका हुआ था वह पी पी एन कालेज में बी एस सी सेकेंड ईयर की स्टूडेंट थी। मुझसे बात करते हुए वह अक्सर पलके झुका लेती थी, यक़ीनन वह भी शबाना की तरह दिमागी तौर पर बेहद जहीन लड़की थी, मै उरुसा से बात कर के उपर छत पर चला गया था और एप्लाइड मेकेनिक्स की बुक में उलझ गया था।
                    यूँ हर शाम में उपर जाता तो उरुसा से मेरी मुलाकात हो जाती। पर अब तक मैंने तूबा को एक बारभी नहीं देखा था, और इससे पहले भी मैंने उसे कभी नहीं देखा था। एक-दो बार मैंने उरुसा से उसके बारे में जिक्र किया था। और हर बार मुझे एक जैसा जवाब मिलता था की वह अपनी सहेली के बर्थडे या सहेली के साथ घुमने गयी है।
                   खैर मेरी ख्वाहिश जल्द ही पूरी हो गयी, वह इतवार का दिन था और मेरी छुट्टी, आज मैंने घुमने का कोई प्रोग्राम नहीं बनाया था। मेरे हाथ में थर्मल इंजीनियरिंग की बुक ली और छत पर गया, आते वक़्त मैंने देखा उरुसा घर के कामों में व्यस्त है और बीएड पर एक लड़की सर झुकाए किसी मैग्जीन के पन्ने पलट रही है, उसके बाल उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे, इसलिए मुझे उसका चेहरा दिखाई नहीं पड़ा हाँ मैंने अंदाजा लगाया कि वह तूबा होगी।
                   मै थर्मल इंजीनियरिंग में उलझा हुआ था, तभी कोई मेरे बगल में कर खड़ा हो गया, उसने हलके से खांस कर्मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा था। मैंने उसकी तरफ देखा, तो वह मुस्कराकर बोली हाय कजिन - और इसी के साथ उसने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिया, मैंने भी उसका हाँथ अपने हाथ में ले लिया। मेरी तरफ देखकर बोली आपका नाम समीर है
मैंने इकरार में सर हिलाया 
वह बोली मै तूबा -
फिर उसने मेरे हाथ से किताब लेकरेक तरफ रख दी और बोली क्या हमेशा इन्हीं किताबों में सर खपाते रहते हो।
मै बोल नहीं किताबों के अलावा भी कई जगह सर खपाना पड़ता है।
वह बोली जैसे-
मै बोल जैसे नीचे शबाना और उपर उरुसा और अभी तो लगता है सर खपाने के लिए तीसरा आइटम भी मिल गया है-
यह तीसरा आइटम कौन है- वह पाक से बोली 
तूबा - मैंने मासूमियत से जवाब दिया।
ये खबरदार जो मुझे आइटम बोला वह मेरी तरफ ऊँगली करते हुए बोली- खुद से आके बात की तो भाव खा रहे हो- इतना कह कर वो पलट कर चल दी, मै उसे पीछे से तूबा-तूबा कह कर पुकारता रहा पर वह रुकी नहीं- मैंने सोचा चलो एक से तो छुटकारा मिला, पर मेरा यह ख्याल एक गलतफहमी साबित हुआ, छुटकारा तो अलग बात मै पहली मुलाकात में ही उसे दिल दे बैठा हूँ यह बात मुझे उस्सी रात समझ में गयी जब मै उसे सोच कर रात भर करवटे बदलता रहा। मै अपने दिल के फैसले पर खुद हैरान था जो एक छोटी मुलाकात पर उस पर फ़िदा हो गया था। जबकि वो खूबसूरती में शबाना और उरुसा के मुकाबिल कंही भी नहीं ठहरती थी और दूसरी बात स्टडी में भी वह उनके मुकाबिल फिसड्डी ही थी। फिर पता नहीं क्यूँ वह साधारण सी लड़की मेरी चाहत बन गयी थी। अगले दिन सुबह उठ कर मै ऊपर गया, छत पर वह और उरुसा दोनों ही मौजूद थी। मुझे देखते हो वह अपने कमरे में चली गयी उरुसा मेरे लिए चाय ले आई और काफी देर तक मेरे पास खड़ी हो कर बात करती रही। मै भी इस उम्मीद में वहां खड़ा रहा की शायद वह नज़्ज़ार जाये पर  ऐसा कुछ नहीं हुआ, मेरे कालेज जाने का टाइम हो रहा था इसलिए मै मायूसी से नीचे गया।
                      उस दिन के बाद से वह जब भी मेरे  सामने आती किसी किसी तरह से नज़रे बचा कर निकल जाती। और मै तड़प कर रह जाता, मुझे पहली बार किसी से मोहब्बत हुई थी और वह थी तूबा जो कानपूर विद्यामंदिर के इण्टर  के सेकेंड ईयर क्लास की स्टूडेंट थी।
                       मेरी पढाई ठीक से चल रही थी और मुझे अब कानपूर रास आने लगा था, शबाना मेरे करीब आने के बहाने ढूढ़ती थी और मै तूबा के करीब जाने के बहाने ढूढता था। एक दिन मै  जब घर आया तो फुफ्फो कंही जा रही थी वह मुझे चाय दे कर चली गयी शबाना अभी तक कालेज से नहीं आई थी, मै ऐसे समय काटने की गरज से छत पर्चाला गया, आज शायद ऊपर भी कोई नहीं था क्यूँ की किसी के बोलने की आवाज़ नहीं रही थी, मै ऐसे ही पता करने के लिए छत से उतर कर ऊपर के पोर्शन में चला गया तो देखा तूबा बैठी हुई टीवी साइलेंट मोड पर रख कर टीवी को देख रही थी। मुझे सामने देख कर वह खड़ी हो गयी और बोली उरुसा अभी तक कालेज से नहीं आई है 
मैंने बोलने के लिए मुहं खोला -
उससे पहले ही वह बोली- मम्मी बजार गयी  है
मैंने कहा तूबा - तुम्हारी पूरी फैमिली में कोई तीसरा भी है।
मेरी बात पर वह कुछ सोचते हुए बोली- ठीक है बैठ जाओ।
मै वन्ही सोफे पर बैठ गया -
वह किचन की तरफ जाते हुए बोली आप टीवी देखो मै चाय ले कर आती हूँ- मैंने उसे  मना किया तो वह बोली चाय उसको पीना है।
उसका मूड खराब हो इसलिए मैंने उसको  नहीं रोका।
वह एक ट्रे में दो कप चाय और कुछ बिस्किट ले कर आई थी, उसने एक कप मेरी तरफ बढ़ा दिया था- चाय पीते हुए वह अचानक बोली समीर शबाना के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है।
मै बोल- मै ख्यालों में नहीं जीता मुझे हकीकत पसंद है।
और हकीकत क्या है वह शोखी से बोली-
हकीकत मेरे सामने है- मैंने देखा मेरी इस बात परुसके चेहरे पर थोड़ी हया   गयी थी- सच पूछो तो मुझको उसकी ये हया बहुत प्यारी लगी थी। वह अपनी बड़ी-बड़ी आँखें उठा कर बोली थी बड़ी बुरी हकीकत चुन रहे है आप।
वह थोड़ी शरमा कर बोली नहीं समीर मेरे कहने का मतलब यह है एक तरफ शबाना और उरुसा दूसरी तरफ मै-
उसकी इस बात का मैंने कोई जवाब नहीं दिया, बस मै उठा उसका नाजुक हाथ अपने हाथ में लिया और बोल तूबा आप यह अभी नहीं समझोगी
वह बोली- समीर फिर कब समझूंगी, उसका हाथ अब तक मेरे हाथ में था।
मैंने बोल गुजरते वक़्त के साथ सब समझ जाओगी तूबा|
अभी सिर्फ इतना बताओ क्या आप मेरे दिल की मंजिल बनेगी। और उसने जब बदले में इक्रारसे सर हिलाया था तो उसका चेहरा हया से लाल हो गया था और मै, मै तो ख़ुशी से झूम उठा था वह मेरे बालों में ऊँगली घुमाती हुई बोली समीर आप आज से मुझे आप नहीं बोलेंगे।                   
मैंने कहा फिर क्या बोलूं- वह बोली सिर्फ तूबा आपको क्या मालूम आप जब मेरा नाम लेते है तो मुझे कितना अच्छा लगता है।
                          फिर उस दिन के बाद मेरी ज़िन्दगी खुशगवार हो गयी, मैंने अपना पूरा ध्यान अपनी पढाई और तूबा पर केन्द्रित कर दिया। मै अपने कालेज ने निकल कर उसके कालेज के सामने खड़ा हो जाता, वह आकर मेरी बाइक पर बैठ जाती स्काई ब्लू स्कर्ट और व्हाइट शर्ट में वह मुझे गुडियों की मानिन्द दिखती हम लोग साथ घूमते, रेस्टोरेंट में स्नैक्स खाते और फिर मै उसे घर से थोड़ी दूर पहले उतार देता, यूँ हुम्घर अलग-अलग पहुँचते, सुबह भी मै यही करता वह घर से बाहेर मेरा इंतज़ार करती हुई मुझको मिलती, मै पहले उसे उसके कालेज छोड़ता फिर खुद कालेज जाता। घर पर भी हम तन्हाई में मिलने का मौका ढूंढ़ लेते, यूँ मेरी शामें मेरी सुबहें तूबा से शुरू होती और तूबा पर ख़तम होती।वक़्त कितना हसीं हो गया था तूबा कभी मेरे शानो पर सर रख कर यह कहती - समीर जब से आप्मिले हो तब से तो वो पंख लगा कर आसमान में उड़ रही है- और तब मै प्यार से उसके रुखसार का बोसा ले लेता और तब वह शर्म से अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपा लेती। धीरे-धीरे तूबा में सलीका भी आने लगा था। मै देखता कि वह बड़े दिल से घर के कामों को करने की कोशिश करती रात को काफी देर तक पढाई करती। सच मुझे उसकी इन अदाओ पर और प्यार आता।   
       वक़्त गुजरता रहा मेरी इंजीनियरिंग की स्टडी मुक्कमल हो गयी और गुजरते वक़्त के साथ मेरा तूबा के साथ इश्क परवान चढ़ता रहा, तूबा वह तो मुझे दीवानों की तरह मोहब्बत करती थी। उसने बी का इम्तिहान पास कर लिया था। उरुसा और शबाना दोनों ही एम् एस सी की स्टूडेंट थी। इस गुजरते वक़्त में ज्यों-ज्यों मेरा इश्क तूबा के साथ जवान हो रहा था। वैसे-वैसे उरुसा मेरी अच्छी दोस्त बनती जा रही थी दोस्ती तो मेरी शबाना  से भी अच्छी खासी हो गयी थी।
               मुझे लगा की सब कुछ ठीक चल रहा है और मै अम्मीजान से तूबा के बारे में बात करने ही वाला था कि मेरी तमाम ज़िन्दगी अंधेरों में घिर गयी।
                उस दिन सुबह से ही मौसम बहुत खुशगवार किस्म का था, मैंने नई-नई जॉब हासिल की थी और उसके साथ ही एक मारुती आल्टो कार खरीद ली थी, मै शाम को द्फ़्तर से निकला और अहिस्ता-अहिस्ता गाड़ी ड्राइव करते हुए घर की तरफ चल पड़ा 
                मेरा दिल सिर्फ तूबा के बारे में ही सोच रहा था, मेरी गाड़ी विजय नगर चौराहे  पर पहुंची थी, तभी दूर से मुझे तूबा खड़ी दिखाई दी, मैंने सोचा वह यहाँ परक्या कर रही है, मुझे लगा शायद यह मेरा वहम होगा, इसलिए मैंने गौर से देखा, हाँ वह तूबा ही थी, मेरे जेहन को एक तेज़ झटका लगा था, इसलिए नहीं की वहां तूबा को नहीं होना चाहिए था बल्कि इसलिए की वह किसी लड़के के साथ खड़े होकर, उससे हँस-हँस के बातें कर रही थी, मैंने उससे थोड़ी दूर पर अपनी कार रोक दी थी,और उसे और उस लड़के को बातें करते हुए देखने लगा था।
                 मै चाहता तो उसके पास जा सकता था पर पता नहीं क्यूँ, मै क्या सोच कर गाड़ी से नहीं उतरा, मै अपलक उन्हें देखता रहा वह दोनों काफी देर तक बातें करते रहे, फिर रिक्शे में बैठ कर रावतपुर की तरफ चल दिए, मुझे लगा की लड़के ने रिक्शे में बैठने के बाद तूबा का हाथ पकड़ लिया था। अगले पल मैंने सोचा की यह मेरा वहम है खैर मै अपना शक दूर करना चाहता था इसलिए गाड़ी को स्टार्ट किया और रावतपुर की तरफ जाने वाली सड़क की तरफ टर्न कर दिया, उस रिक्शे के बगल से मैंने गाड़ी को यूँ निकल की तूबा की मुझ पर्नाज़र पड़े, मैंने देखा की लड़के ने यक़ीनन तूबा का हाथ पकड़ रखा था इस बार मुझे कोई धोखा नहीं हुआ था, जो मैंने देखा था, पर क्या करूँ यह सब मैंने देखा था, मेरा दिमाग सुन्न हो चला था, नसों में बहता हुआ लहू, लग रहा था अभी जम जायेगा, मैंने देखा स्टेयरिंग पर मेरे हाथ कांप रहे थे, ऐसा लग रहा था की मेरा दिल बैठा जा रहा है। जाने किस तरह मै  घर पहुंचा था मुझे खुद मालूम नहीं था। 
                  घर पहुँच कर सीधे अपने कमरे में चला गया था हलाकि फुफ्फो मुझे पुकारती रही थी पर मैंने उनकी आवाज़ पर कोई तवज्जो नहीं दी थी। 
मै कमरे में पहुँच कर सीधे अपने बेड पर लेट गया था यहाँ तक की मैंने अपने शूज भी नहीं उतारे थे, अपनी आखों पर मैंने अपने बांये हाथ को मोड़ कर रख लिया था और सोचने लगा था तूबा और उसके साथ उस लड़के के बारे में।
जाने कितना वक़्त इसी तरह गुजर गया होगा मुझे अंदाजा नहीं था। अचानक मुझे लगा की मेरे शूज में कुछ हरकत हो रही है मैंने धीरे से अपनी आँख खोली, मैंने देखा शबाना मेरे जूते के तस्मे खोल रही है, मै झटके से उठ कर बैठ गया। मैंने अपने शूज से हटाकर शबाना का हाथ पकड़ लिया था, मै थोडा ते आवाज़ में बोल- ये क्या कर रही है आप ?
बदले में शबाना बिना कुछ बोले अपना हाथ मेरे हाथों से छुड़ा कर वापस मेरे पैरों में झुक गयी और मेरे शूज के फीते खोलने लगी।
जाने क्या हुआ था अबकी बार मैंने उसे रोक नहीं था उसने एक बार पलके उठा कर मेरी तरफ देखा, और फिर उसने मेरे दोनों पैरों से शूज और शाक्स उतार कर उन्हें शूज सेल्फ में रख कर एक तरफ खड़ी हो गयी थी, मै उठ कर उसके पास गया और उसे उसके शानो को पकड़ कर सोफे पर बिठा दिया और खुद उसके पास बैठ गया।
मै बोल- शबाना ये सब क्या कर रही है आप 
बदले में वो सोफे से उठ  क़दमों में बैठ गयी और मेरी तरफ सर उठा कर बोली समीर - मुझे अपने क़दमों, अपनी ज़िन्दगी में जगह दे दो।
मैंने शबाना की तरफ देखा और बोला, शबाना तुम हर लिहाज से अच्छी लड़की हो हर शख्स तुम्हे अपनी बीवी के रूप में पाना चाहेगा, पर मै क्या करूँ मै किसी और से मोहब्बत करता हूँ। 
उसने अजीब सी निगाहों से  देखा था, मेरे इस जुमले ने उसे पे शदीद असर किया था। वह कांपती आवाज़ में बोली थी- क्या मुझे उस खुशनसीब का नाम जानने का हुक है।
और मैंने उसके दिल पर बिजलियाँ गिरते हुए बोला- तूबा 
शबाना ने मेरे जानिब ननीदी निगाहों से देखा और फिर मुझे रूम में तन्हा छोड़ दरवाज़े से बाहेर निकल गयी।
और मै थका हारा सोफे पर ढेर हो गया और वापस तूबा के ख्यालों में खो गया।
वो तूबा जो और किसी लड़के के साथ मुझे दिखाई पड़ी थी। मै यूँ ही सोफे पर जाने कब तक बैठा रहा था चरों तरफ अँधेरा फ़ैल चूका था, और शायद मेरा दिल भी अँधेरे में डूब रहा था।
मैंने बहुत बोझिल मन से, फुफ्फो के बार-बार कहने पर डिनर किया था, मैंने देखा था डिनर करने के वक़्त शबाना की आँखों में बार-बार अश्क रहे थे, और वो उन्हें मेरी और फुफ्फो की नज़रे बचा कर साफ़ कर रही थी।
डिनर के बाद आज में ऊपर के पोर्शन में नहीं गया था ही जानने की कोशिश की,  तूबा आई है या नहीं। जाकर मै बिस्टेर पर लेट गया था पर नींद वह आँखों से कोसो दूर थी, ख्यालों में थी तो सिर्फ तूबा, साडी रात मैंने आँखों में गुजारी। 
सवेरा हो चूका था चारो और उजाला फ़ैल रहा था, पर मुझे महसूस हो रहा था की अब मेरे लिए चारो तरफ सिर्फ अँधेरा है।
नाश्ता करने के बाद मै बोझिल मन से द्फ्तर के लिए निकल पड़ा था, मैंने महसूस किया था दो आँखे मेरा पीछा कर रही थी, यक़ीनन वह आँखे शबाना की थी। 
मै गाड़ी लेकर सड़क पर गया था, आगे यू-टर्न पर मैंने देखा तूबा खड़ी है, मैंने गाड़ी रोक दी और वह दूर खोल कर बैठ गयी। 
मैंने देखा उसके चेहरे पर वही मासूमियत, वही मुस्कान खेल रही थी, पर मै खामोश था, मुक्कमल खामोश। थोड़ी सेर बाद वह बोली, क्या हुआ समीर आज बहुत चुप हो, और मै गाड़ी का गियर बदलते हुए उसके चेहरे के जानिब देखते हुए पुछा, कल क्या-क्या किया अपने- बस कुछ नहीं पुरे दिन कालेज में थी, कल सरे पीरियड अटेंड किये मैंने, वह बड़ी मासूमियत से बोली थी।
मुझे शदीद झटका लगा उसकी ये बात सुन कर, एक बार मैंने सोचा तूबा सच बोल रही है मैंने जरूर कल कोई गलती की है, पर ऐसा कैसे हो सकता था, यकिनन मैंने कल कोई धोखा नहीं खाया था, मैंने किसी लड़के के साथ तूबा को ही देखा था, पर तूबा बड़ी सफाई से झूठ बोल रही थी।
खैर मै अपने सब्र का इम्तिहान देने को तैयार था इसलिए कल का कोई जिक्र करना मैंने बेहतर नहीं समझा, और उसे उसके कालेज के सामने ड्राप करके खुद ऑफिस चला गया।
आज फिर तूबा मुझे उसी लड़के के साथ नज़र थी जगह थी माल रोड, दोनों ही हीर पैलेस के सामने खड़े थे, पिछले वाकये को अभी चार-पांच दिन ही गुजरे थे और ये नया हादसा मेरे आँखों के सामने था। आज मै यूँ ही ऑफिस से लंच के बाद हो नक़ल आया था और युनिवर्सल बुक स्टाल में एक बुक लेने के लिए गया था, और मेरी नज़र ने हीर पैलेस के आगे उन दोनों को देख लिया था।
मै कुछ देर शाक्ड कंडिशन में गाड़ी में बैठा रहा, वो आपस में हँस-हँस के बात कर रहे थे पहले मैंने सोचा की मै गाड़ी से उतर कर उनके पास चला जाऊ, फिर जाने क्या सोच कर मै गाड़ी में ही बैठ कर उन दोनों को देखता रहा।
शायद मूवी स्टार्ट होने का टाइम हो रहा था इसलिए वो दोनों थिएटर के अंदर चले गए थे।
मै कुछ देर यूँही गाड़ी में बैठा रहा, मुझे लग रहा था जैसे मेरा दिमाग सुन्न हो गया हो, मै कुछ भी सोच नहीं पा रहा था। मै क्या करूँ क्या करूँ जाने कैसी वहशत मुझ पर हावी होती जा रही थी, जाने किन ख्यालों में, मैंने गाड़ी को वापस घर की तरफ दौड़ा दिया था, घर पहुँच कर भी मुझे सुकून हांसिल नहीं हुआ था। मै टीवी देखते हुए भी बस तूबा और उस लड़के के बारे में सोच रहा था।मुझे लग रहा था मेरी ज़िन्दगी जहन्नुम होती जा रही है।
शाम के पांच बजे के आस-पास तूबा घर में दाखिल हुई थी, वैसे ही इठलाती हुई मुस्कराती हुई, आज जाने क्यूँ मुझे उसकी मुस्कान ज़हर से भीगी हुई लग रही थी। मेरी तरफ एक मुस्कार बिखेर कर वह ऊपर के जानिब चली गयी थी, मुझे मालूम था इस वक़्त ऊपर कोई नहीं है बस इसलिए मै भी भाग कर उसके पीछे ऊपर पहुँच गया थामैंने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचते हुए बोला कहाँ थी तुम-
वह अदा से मुस्कराती हुई बोली कहाँ थी मतलब-
कालेज में थी और कहाँ  
मेरा सब्र जवाब दे गया था 
मैंने कहा, मै कालेज गया था तुम्हारे तुम्हारी फ्रेंड रेखा मिली थी- उसने कहा तुम कंही घुमने गयी हो 
मेरी बात सुन कर उसका चेहरा थोडा उतर गया था, पर वह बड़ी ही घाघ लड़की थी उसने तुरंत ही खुद को सम्भाल लिया था, चेहरे पर मुस्कार बिखेरते हुए बोली
ऒह समीर आप मुझसे ज्यादा रेखा पर यकीन कब से करने लगे, फिर वह बायीं आँख दबा कर बोलिउ कंही उससे कोई चक्कर-वक्कर तो चालू नहीं हो गया आपका-
और मै - मेरा जब्त जवाब दे गया था मेरा हाथ हवा में लहराया और तड़ाक की आवाज़ के साथ तूबा के गाल से टकराया मेरा थप्पड़ इतना तेज़ था की वह खुद को संभाल सकी और लहराते हुए पास में पड़े सोफे पर जा गिरी- सिर्फ कुछ पल हाँ कुछ पल ही शांति के थे , फिर वो तड़प कर उठ के सोफे पर बैठ गयी और मेरे तरफ जलती हुई नगहों से देखते हुए बोली
मिस्टर समीर, आप हदें पार कर रहे है आपको मुझे मारने का कोई हुक नहीं है और हाँ आज मै कालेज में नहीं थी, घुमने गयी थी और सुने मुझे कंही आने-जाने या घुमने के लिए आपसे इजाज़त लेने की जरुरत नहीं है।
  ही मुझसे पूछने का हक आप रखते है।- और फिर वो बेझिझक  चली गयी अपने और अपने उस प्रेमी साजिर के बारे में, हाँ बड़ी बेहयाई से वो सुना रही थी अपने और साजिर के किस्से, उसका हर अल्फाज़ पिघलते शीशे की तरह उतरता जा रहा था मेरे कानों में उसका हर जुमला मेरे दिलों दिमाग पर  चला रहा था, अश्कों की बूंदे मेरे आखों के कोनो में इकठ्ठी हो चुकी थी- हाँ आज मैंने कोशिश की थी की वो ढलक कर आँखों से बाहर जाएँ, हाँ मै खुद को एक बेवफा के आगे खुद को कमजोर  करना चाहता था।
फिर वो नागिन की मानिन्द फुफकारती हुई बोली अब मुझे तन्हा छोड़ दो समीर और यहाँ से निकल जाओ। और हाँ जब तक ज़िन्दगी रहे खुद अपनी सूरत मुझेमत दिखाना 
और मै पलट कर थके क़दमों से दरवाज़े की तरफ बढ चला, अभी मैं दरवाज़े पर पहुंचा था की उसकी आवाज़ वापस कटार की तरह सुनाई दी- वो बोली- समीर, एक बात और मैंने तुमसे कभी प्यार नहीं किया हमारे बीच जो भी था वो शायद आकर्षण से ज्यादा था।
मैंने उसकी बात बिना पलते सुनी और फिर तेज़ क़दमों से वहां से निकल कर गया, अपने कमरे में जरूर में सोफे पर इस तरह से बैठ गया जैसे सैकड़ों सालों से बीमार हूँ। मेरे सोचने की ताकत ख़त्म हो गयी थी,आंसुओं को मैंने जब्त करके रखा हुआ था, मैंने खुद को इस वक़्त ग़मों के अन्धकार में पाया था, जिसका सब कुछ लुट गया हो, बर्बाद हो गया हो।
हाँ अगले कई दिन ग़मों से सराबोर थे मेरे ज़िन्दगी में पहली बार मेरा दिल टूटा था और वो भी इस तरह और वो भी उसके हाथों जो सारी कायनात में मुझे सबसे ज्यादा अजीज था, हाँ उस दिन के बाद फिर मै कभी तूबा के सामने खुद होकर नहीं गया, जो कभी वो मेरे सामने पड़ भी गयी तो मैंने नज़रे झुका ली खुद होकर उसने भी कभी मुझसे बात नहीं की।
और फिर तूबा ने मेरे साथ-साथ, अपनी अम्मी और बड़ी बहन उरुसा पर बिजलियाँ गिरती हुई अपने बॉयफ्रेंड साजिर के साथ भाग कर शादी  कर ली थी।
छोटी फुफ्फो ने इसे अपना मुकद्दर मान कर घर में फिर कभी उसका ज़िक्र करने से मना कर दिया, मेरी फुफ्फो से सरे गिले शिकवे मिटा कर उरुसा को अली की दुल्हन बना कृर ऊपर के पोर्शन से नीचे के पोर्शन में ले आयी।
और मै और मेरा दर्द अगर कोई समझ सकता था तो वो थी शबाना जो मेरी हालत देख सारी-सारी रात आंसू बहाया करती थी और मेरी मोहब्बत में तडपा करती थी।
फिर एक दिन मेरे अम्मी-अब्बू फुफ्फो के घर आये, मेरे लिए शबाना का रिश्ता मांगने, जिसे फुफ्फो ने खुशी से कबूल कर लिया था। मेरी ख़ामोशी को मेरी अम्मी ने मेरी रजामंदी समझा।
उस रात जाने कौन से पहर, शबाना मेरे कमरे में  आकर बोली- समीर, आप चांहे तो मेरा रिश्ता ठुकरा सकते है, मै जानती हूँ कभी भी मै तुम्हारे दिल में तूबा की जगह नहीं ले सकती, मै तुम्हे कभी भी खुश नहीं रख सकती। पर एक बात सच है समीर मै आपसे बेपनाह मोहब्बत करती हूँ और यकीन जानो मै तो आपसे इश्क करती हूँ - आप मुझे मिलो मिलो, आप मुझसे मोहब्बत करो करो, पर मै अपने इसी इश्क के सहारे अपनी ज़िन्दगी गुजार दूंगी।
और जाने कौन सी भावना थी की मैंने आगे बढकर पागलों की तरह उसे अपने गले से भींच लिया था और वो मेरे सीने में खुद को छुपाने की कोशिश करने लगी थी, और मै प्यार से उसके बालों को सहलाने लगा था और शायद यही मेरी मुहब्बत का इज़हार था।
और फिर मैंने कानपूर छोड़ दिया, मुंबई में जॉब हासिल किया और शबाना को दुल्हन बना कर अपने घर ले आया, शबाना हर लिहाज़ से अच्छी बीवी साबित हुई, उन्होंने प्यार से मेरी ज़िन्दगी सराबोर कर दी, मुझे राबिया जैसी खूबसूरत बच्ची दी सच ज़िन्दगी हर जानिब से खुशगवार हो गयी।
पर अभी एक तूफ़ान मेरी ज़न्दगी में आना बाकी था, मेरी मेहनत और शबाना की दुआए रंग लायी थी, मैंने खुद की एक छोटी सी फैक्ट्री चालू कर ली थी। एक दिन मै फैक्ट्री की फाइलें देख रहा था तभी मेरे मैनेजेर ने मुझसे केर कहा- सर अपने जो पी के लिए एडवरटाइज किया था उसके लिए एक लड्किका इन्टरव्यू लिया था मैंने।
मै बोला- अहमद अगर तुम्हे वह इस पोस्ट के लिए सूटेबल लगती है तो रख लो 
वह बोल जी सर- वह है तो सूटेबल पर मै चाहता हूँ एक बार आप उसका इन्टरव्यू ले ले। वो इस समय बाहर बैठी है।
मै कुछ सोचते हुए बोला ठीक है उसे अंदर भेज दो-
मै कुछ थकान की वजह से कुर्सी की पुश्त से सर टिका कर बैठ गया था और मैंने अपनी आँखे बंद कर ली थी।
मुझे आवाज़ सुनाई पड़ी- मे आई कम इन सर-
जाने क्यूँ मुझे लगा की ये आवाज़ मैंने हजारों बार सुनी है- मै आँखे बंद किये हुए बोल- यस  
मैंने क़दमों की आहट को करीब आते हुए सुना- आँखों के ऊपर रखा हाथ हटाया और आँखे खोली, सामने जो लड़की खड़ी थी उसे देख कर मेरे शरीर को एक शदीद झटका लगा- यक़ीनन वो तूबा थी, मेरा अतीत मेरे सामने खड़ा था।
मेरे चेहरे पर नज़र पड़ते ही उसने नज़रे झुका ली थी, लरजती आवाज़ मै  वो बोली- सॉरी समीर मुझे पता था यहाँ पर आप मिलेंगे, इतना बोल कर वो पलट कर चल दी थी, वो दरवाज़े तक ही पहुंची थी- मैंने उसे आवाज़ दी तूबाइन्टरव्यू देकर जाइये, न जाने क्या था मेरी आवाज़ में की वह वापस आकर मेरे सामने खड़ी हो गयी थी। मैंने उसे बैठने के लिए बोला तो वह थैंक्स कहते हुए मेरे सामने पड़ी चेयर पर बैठ गयी थी।
उसने फाइल मेरी तरफ बढ़ा दी थी, उसकी फाइल देखते हुए मैंने उससे दो-तीन सवाल पूछे थे, जिनके जवाब में वो चुप ही रही थी। 
मैंने फाइल बंद करते हुए कहा- एक पर्सनल सवाल पूछ सकता हूँ-
वो बोली- जी पूछिए 
मैंने कहा मिसेज तूबा साजिर को यूँ नौकरी की क्या जरुरत पड़ गयी
मेरी निगाहें उसके चेहरे पर जमी हुई थी।
वो आँखे झुकाते हुए बोली अब मै मिसेज तूबा साजिर नहीं रही।
मै तुरंत कुछ बोल नहीं, कुछ पलो तक सर झुकाए बैठी तूबा को देखता रहा- फिर मैंने कहा मै कुछ समझा नहीं।
बदले में वो वैसे ही सर झुकाए बोली आप तो बचपन से ही शार्पमाइंडेड है, फिर भी नहीं समझे 
मै हँसते हुए बोल मेरी जहानत दुनियावी मामलों में कमजोर है मैडम, यह आपको भी बताने की जरुरत नहीं- मेरे इस जुमले ने शायद उसे कचोटा था, तभी तो उसने सर उठा कर मेरे जानिब देखा था।
जाने क्यूँ उसके चेहरे पर तड़प देख कर मुझे अच्छा लगा था।, पर अगले ही पल मेरे मन ने मुझे धिक्कारा था, आखिर वो मेरी मोहब्बत थी, किसी ज़माने में।
मै अपने लहजे को नर्म करते हुए बोला था- तूबा, अगर आप कुछ बताना चांहे तो मुझे बता सकती है, और तूबा ने लरजती आवाज़ में जो बताया वो सुन के मै सकते में गया।
तूबा मुझे ठुकरा तो चुकी थी दौलत मंद साजिर की वजह से, पर शादी के कुछ दिन बाद ही साजिर ने अपने रंग दिखने चालू कर दिए थे, वो ऐसा लड़का नहीं था जो एक औरत के पल्लू से बंध कर रहता, आखिर वही हुआ, साजिर एक दिन सामया को अपनी दुल्हन बना कर अपने घर ले आया और सामया ने तूबा को घरसे बहर का राश्ता दिखा दिया, वह अपने घर भी जा सकी और यूँ एक गर्ल्स हास्टल में रह कर जॉब की तलाश में लग गयी।
खैर मैंने उसकी फाइल यह कहते हुए रख ली, कि मै उसे जॉब के बारे में बाद में इन्फॉर्म कर दूंगा और तूबा उठ कर चली गयी।
घर पहुँच कर मैंने चाय पीते हुए सारा वाक्या शबाना को बताया, वो बड़े गौर से मेरी बात सुनती रही, फिर मेरे बालों को सहलाते हुए बोली- आप उस बेचारी को नौकरी दे ही दो।
मैंने शबाना के चेहरे के जानिब देखते हुए पुछा, ये जानते हुए भी की वो मेरी पहली मोहब्बत थी तुम उसे मेरे पास आने देना चाहती हो और शबाना ने मेरा चेहरा अपने कोमल हथेलियों के बीच लेती हुई बोली - समीर अब आप मेरे शौहर है और मुझे अपने शौहर पर पूरा यकीन है।
मैंने कहा पर शबाना उसने जो किया उसके बाद ये सब- और शबाना मेरी बात काटते हुए बोली उसकी सजा उसे खुद दे चूका है।
आप तो उसे बस एक जॉब दे दे।
और मै ताकने लगा पाक अप्सराओं सा शबाना का चेहरा, जहाँ दया, प्यार, मोहब्बत और गैरों के लिए दर्द समाया था, हाँ यक़ीनन शबाना ही थी मेरी दिल की मंजिल और मैंने तड़प कर अपने दिल की मजिल की गोद में सर छुपा लिया और वह अपने हाथों से मेरा सर सहलाने लगी।                                   
                                                                                                                        -000000-

Sudheer  Maurya 'Sudheer'
Ganj Jalalabad, Unnao
209869

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