Thursday 29 May 2014

माई लास्ट अफेयर - सुधीर मौर्य

उसके पाँव देखकर मुझे खुद को लिखी कविता की एक लाईन याद आ गई थी। जिसमें होठों ही होठों में गुनगुना उठा था।
``तेरे ये चाँद से पाँव''
यकीनन उसके पाँव जमीं से नजर आने वाले बादलों के पार के चाँद की खूबसूरती को किसी भी स्पर्धा में कभी भी हरा सकते थे। उसके पाँव के अंगूठे और अंगुलियों की नक्काशी ताजमहल की नक्काशी से कहीं बेहतर थी। मुझे तो ये लगा कारीगर ने किसी हूर के खातिर बनाये गये पैरों को इस नाजनीन के लगा दिया था। मुझे इस वक्त छ: स्ट्रिप (दो टी शर्ट की और चार चप्पल की) से ईर्ष्या होने लगी थी जो उसके सबसे प्यारी जगहों से बेखोफ-बेलोस चिपकी हुई थी।
फंतासी 'माई लास्ट अफेयर' से
--सुधीर मौर्य

Thursday 27 February 2014

अमलतास के फूल (उपन्यास) - सुधीर मौर्य

प्रस्तुत उपन्यास ’अमलतास के फूल’ मेरा दूसरा उपन्यास है एवम् सब विधाओं में मिला कर सातवीं कृति । वस्तुतः पठन-पाठन और लेखन में खुद को बचपन से सम्बद्ध पाता हूँ । प्रस्तुत उपन्यास को भी मैंने कोई सन् 2003 में लिखना आरम्भ किया था, कोई सत्रह पृष्ठ लिखने के बाद कुछ मानसिक आघातों के कारण से इस को जो सन्दूक में डाला तो फिर मे वापिस 2012 में निकाला और अब ये सम्पूर्ण हो कर आप सब के सामने आने को है ।

नौ साल का अन्तराल बहुत होता है । सो जाहिर सी बात है मेरे उस वक्त के सोचे कथानक से इस का कथानक थोडा सा भिन्न हो गया है । पर मूल वही बना रहे, इस का ध्यान मैंने रखा है ।

सन् 2003 से सन् 2004 का मेरा जीवन काल, तमाम मानसिक पीडाओं से गुजरा, जिस का विस्तार में जिक मैं कभी फिर करूँगा । हां, इतना अवश्य है कि इन कारणों की वजह से पूरे पाँच साल मेरा लेखन कार्य प्रभावित रहा है । खैर, वह सब अब अतीत है । अब मैं वर्तमान में खुश रहना चाहता हूँ ।

उपन्यास कैसा बन पडा, इस सब के बारे में राय तो आप लोग ही देंगे, जिस का मैं बेसब्री से इन्तजार करूँगा ।   (for novel plz contact 09699787634 / sudheermaurya1979@rediffmail.com)