Thursday 29 May 2014

माई लास्ट अफेयर - सुधीर मौर्य

उसके पाँव देखकर मुझे खुद को लिखी कविता की एक लाईन याद आ गई थी। जिसमें होठों ही होठों में गुनगुना उठा था।
``तेरे ये चाँद से पाँव''
यकीनन उसके पाँव जमीं से नजर आने वाले बादलों के पार के चाँद की खूबसूरती को किसी भी स्पर्धा में कभी भी हरा सकते थे। उसके पाँव के अंगूठे और अंगुलियों की नक्काशी ताजमहल की नक्काशी से कहीं बेहतर थी। मुझे तो ये लगा कारीगर ने किसी हूर के खातिर बनाये गये पैरों को इस नाजनीन के लगा दिया था। मुझे इस वक्त छ: स्ट्रिप (दो टी शर्ट की और चार चप्पल की) से ईर्ष्या होने लगी थी जो उसके सबसे प्यारी जगहों से बेखोफ-बेलोस चिपकी हुई थी।
फंतासी 'माई लास्ट अफेयर' से
--सुधीर मौर्य